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भाव पे न टिकने वाले को दुकानदार समान नहीं देता तो भाव न होने वालों को हरि कैसे मिले

भाव बिना बाजार में वस्तु मिले नहीं मोल।
बिना हरी कमजोर भाव सहित हरी बोल।।
आज नज़र पर गयी कबीर के इस दोहे पर और एक कहानी याद आ गया। एक आदमी पत्नी से बोला की मैं बाज़ार जा रहा हूँ।
पत्नी बोली “बाज़ार जा रहे हो तो कुछ अच्छा दिखे तो ख़रीद लेना और ठग मत जाना बाज़ार में काफ़ी सारे ठग बैठे रहते हैं।”
पति बाज़ार पहुँचा और उसे एक छाता दिखा जो उसे पसंद आ गया। उसने दुकानदार से भाव पूछा।
दुकानदार ने कहा “200 रुपए”
पति को पत्नी की सलाह याद आ गया “उसने कहा 100 का दोगे।”
दुकानदार समझ गया की ग्राहक समझदार है, उसने कहा 160 का दूँगा।
वह समझ दुकानदार बहुत बड़ा ठग है उसने तुरंत भाव बदल दी, कहा 80 का दोगे?
दुकानदार ने कहा 10 का दूँगा।
ग्राहक ने कहा 40 का दोगे।
दुकानदार ने कहा मुफ़्त का ही लेलो
ग्राहक ने कहा फिर तो दो ले लूँगा।
और उसे दुकानदार ने छाता नहीं दिया।
अगर भाव पे न टिकने वाले को दुकानदार समान नहीं देता तो भाव न होने वालों को हरि कैसे मिल सकता है। तो अगर हरि चाहिए तो सम्पूर्ण भाव से पुकारो। ज़रूर ही मिलेंगे।

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