skip to content

Win Hearts

Win Hearts

डरो मत

“हमारे संदेह गद्दार हैं। हम जो सफलता प्राप्त कर सकते हैं, वह नहीं कर पते, क्योंकि संशय में पड़कर प्रयत्न ही नहीं करते। ” शेक्सपियर
अभी कुछ दिनों पहले राहुल गाँधी ने सारे देवी देवताओं के प्रतिमाओं के वरदहस्त रूप के ओर इशारे करते हुए कहा की वे हमें कहते हैं कि “डरो मत।”
वास्तव में भविष्य में उत्पन्न होनेवाली चिंता और कठिनाई के बारे में सोचकर काफी लोग कुछ निर्णय ही नहीं लेते है।बीते हुए कल का पश्चात्ताप और आने वाले कल की चिंता कइयों को अकर्मण्य बना देती है।
जीवन बहूत सुन्दर है, बहूत शानदार है और असीम संभावनाओं से परिपूर्ण भी है। हममे वो सारी खूबियां मौजूद है जिसके बूते हम कुछ भी थान लें तो उसे पूरा कर सकते हैं। जरूरत यह है हम भविष्य में आनेवाली संकट की परवाह न करें और प्रसन्न रहें।
जबतक दुर्गम रास्ते पर करने की नौबत न आये, उसके बारे में व्यर्थ चिंता न करें, यह मत सोचें कि रास्ता कैसे पर होगा। भगवान् पर भरोसा रखें, प्रसन्न रहें, मन में विश्वास को ओजस्वित रखें और अपना कर्म करते रहें।
जीवन एक ईश्वरीय उपहार है, जीवन सुन्दर है, जीवन शानदार है। हमारा उद्देश्य इसे और सुखी और शानदार बनाना है। हम दासता और भय को दूर करें तो सुख, समृद्धि और सफलता हमारे पाँव चूमेगी।

डरो मत Read More »

यूँ घूर घूर कर मुझे देखा न करो

कुछ दिन पहले  एक कॉलेज स्टूडेंट से बात हो रही थी तो वो कह रही थी कि किस तरह पुरुष वर्ग लड़कियों पर तंज कसते हैं, उन पर अभद्र व्यंग करते हैं, ललचाई नजरों से घूरते हैं और कभी कभी तो अश्लील हरकतें भी करने को उन्मादित होते हैं। इसे लड़की ताड़ना कहते हैं।
मैं जब भी ऐसे वाक़या के बारे में सुनता हूँ या ऐसा करते हुए युवकों को देक्ठा हूँ  मुझे रामचरित मानस की एक चौपाई और राम लक्ष्मण के जनकपुर भ्रमण वाली प्रसंग याद आ जाती है। प्रसंग कुछ ऐसे है
हियँ हरषहिं बरषहिं सुमन सुमुखि सुलोचनि बृंद।
जाहिं जहाँ जहँ बंधू दोउ तहँ तहँ परमानन्द।।
राम विश्वामित्र के संग मिथिला पँहुचते है। शाम के समय विश्वामित्र जी राम और लक्ष्मण के साथ सत्संग के लिए बैठते हैं। लक्ष्मण जी का मन सत्संग में नहीं लग रहा क्योंकि उनके मन में अयोध्या घूमने की कौतुहलता है। राम यह भांप लेते हैं और गुरु जी से शहर देखने जाने के अनुमति का अनुग्रह करते हैं। गुरु जी यह जान लेते हैं की भगवन की इच्छा अपने गुण शील और ज्ञान युक्त मिथिला के भक्तों को दर्शन देने की है तो उन्हें आज्ञा दे देते हैं।
राम लक्ष्मण नगर की ओर चल देते हैं। बच्चे उनके पीछे पीछे, पुरुष सड़क के दोनों ओर और नगर की नारी वर्ग अपने घरों के छत से भगवान् के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। उनके मनोहर छवि की एक झलक पाने को सब लालायित हैं। राम और लक्ष्मण बिना इधर उधर देखते हुए नगर भ्रमण कर रहे हैं । स्त्रियों को भगवान के मुख का दर्शन नहीं हो पा रहा और इसलिए वो थोड़े उदास हैं, वो आपस में उपाय सोच रही है कि किशोर राम और लक्ष्मण के मुख का दर्शन कैसे किया जाए।
फिर एक स्त्री उपाय बताती है – “अरे सखी अपने अपने बेनी के फूल निकालकर हम उनके ऊपर फेंकते है ताकि वो नजर ऊपर की तरफ करें और हमें उनका दिव्य दीदार हो जाए। सारी स्त्रियाँ ऐसा ही करती हैं भगवान् के ऊपर सुन्दर और सुगन्धित पुष्पों की वर्षा होती है और भगवान् अपनी नजर ऊपर के तरफ करते है और उनके मुखावलोकन से नारियाँ मन्त्र मुग्ध हो जाती है।
तो अगर आपको किसी को आकर्षित करना है तो अच्छे गुण शील और ज्ञान की शक्ति स्वयं में ओजश्वित करो। छिछोड़ेपन से खुद को कलंकित क्यों करते हो।

यूँ घूर घूर कर मुझे देखा न करो Read More »

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् ।

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् ।

परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥

इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है कि महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों में जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही है, वह यह है कि दूसरों का भला करना पुण्य है और दूसरों को अपनी वजह से दुखी करना ही पाप है।

यह श्लोक जीवन के बहुत ही मूलभूत सिद्धांत को सरलता से समझने और अपनाने में मदद भी करता है। 

परोपकार का अर्थ यहाँ अच्छे कर्म करना जैसे की जरूरतमंदों की मदद करना, समाज कल्याण की भावना को सर्वांगीण करना, आध्यात्मिक उन्नति करना तथा स्वयं एवं संसार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर आध्यात्मिक उन्नति करने को ही जीवन का असली मकसद बताता है। 

अब हम यहाँ पाप को ठीक से समझें तो इसका मतलब सिर्फ धार्मिक दृष्टि से गलत कार्य ही नहीं बल्कि वे सभी कर्म भी शामिल हैं जो नैतिक रूप से, देश, काल और परिस्थिति के अनुसार भी अनुचित है और दूसरों को नुकसान या कष्ट पहुँचाने की मनसा से किये जाते हैं। 

यहाँ पीड़ा का मतलब शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, और आर्थिक पीड़ा भी है जिससे किसी की प्रतिष्ठा या किसी के अधिकारों का हनन करना भी हो सकता है। 

प्रेरणा:

  1. “परोपकाराय पुण्याय” हमें एक सच्चे और नैतिक जीवन जीने की दिशा में प्रेरित करता है।  
  2. “पापाय परपीडनम्” की अवधारणा हमें एक संवेदनशील, जागरूक और जिम्मेदार व्यक्ति बनने की प्रेरणा देती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारे हर कर्म का प्रभाव दूसरों पर पड़ता है, और इसलिए हमें हमेशा दूसरों की भलाई को ध्यान में रखते हुए कार्य करना चाहिए।

अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् । Read More »

तश्मै श्री गुरूवे नमः

बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि । महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर ॥५॥

बंदउ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ॥

अमिय मूरिमय चूरन चारू । समन सकल भव रुज परिवारू ॥

सुकृति संभु तन बिमल बिभूती । मंजुल मंगल मोद प्रसूती ॥

जन मन मंजु मुकुर मल हरनी । किएँ तिलक गुन गन बस करनी ॥

श्रीगुर पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ॥

दलन मोह तम सो सप्रकासू । बड़े भाग उर आवइ जासू ॥

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के । मिटहिं दोष दुख भव रजनी के ॥

सूझहिं राम चरित मनि मानिक । गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक ॥

गुरु चरण वंदनीय हैं क्योंकि उनके वचन सुरुचिपूर्ण, सुगंध तथा अनुराग रास से पूर्ण हैं। गुरु सञ्जीवनी बूटी हैं जो सारे भवरोगों के परिवार का नाश करते हैं। गुरु वंदनीय हैं क्योंकि मुश्किल की घडी में जब कोई उपाय नहीं सूझ रहा हो तो उनके स्मरण मात्र से हृदय में दिव्य दृष्टी उत्पन्न हो जाती है जिससे अज्ञानरूपी अंधकार का नाश हो जाता है।

गुरु वंदनीय हैं क्योंकि संसार में जो दुःख दोष रूपी रात्रि है उसमें उनके ज्ञान के प्रभाव से नेत्र खुल जाते हैं जिससे मार्ग प्रशस्त दिखने लगते हैं।

गुरु वंदनीय हैं क्योंकि उनके चरण धूल उस अंजन के तरह है जिसे लगाने से पर्वतों, वनों, और पृथ्वी के गुह्य से भी गुह्य रहश्य अपने आप प्रकट होने लगते हैं।

तश्मै श्री गुरूवे नमः Read More »

बूँद जो मोती बने

बारिस की एक बूँद समुद्र में गिर जाने के कारण रोने लगी। समुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा: “यहाँ तुम अपने भाई बहनों के साथ हो।

एक विशाल परिवार का हिस्सा। अलग होने के लिए एक छलांग लगाने की देरी है उड़ तो जाओगे लेकिन भांप बनकर बिखड़ भी।

आना तो तुझे फिर भी है :- “किसी किसान के खेत में, या किसी नाले में, या किसी तालाब में या की गंगा में गंगाजल बनकर या फिर किसी प्यासे के लिए वरदान बनकर उसके लोटे में।”

बूँद जो मोती बने Read More »

सुन रहा है ना तू रो रहा हूँ मैं

सामान्यतः हमें दो राह दिखते हैं – एक जिसमें हम क्षणिक भोग विलास के वस्तुओं के उपलब्धता को श्रेस्ठ लक्ष्य समझते हैं और दूसरी जिसमें हमारी ज़िंदगी एक समग्र लक्ष्य की प्राप्ति के ऊपर केन्द्रित रहती है।

क्योंकि हम मार्केटिंग ड्रिवेन वातावरण में जीते है तो भोग विलास के वस्तुओं पर हमारी लालसा ज़्यादा रहती है और अक्सर हम सभी इसके चार दुस्परिणामों से ग्रसित रहते हैं।

१) अभाव – हमारे आस पास एक अभाव की भावना फैली हुई है। धन न होने का अभाव, अच्छी शिक्षा न होने का अभाव, भाग्यवान न होने का अभाव, सामाजिक और सांसारिक वातावरण के अनुकूल न होने का अभाव, आदि आदि।

२) ठहराव – हम भाग तो रहे है लेकिन एक तरह से ठहर से गए हुए हैं। हमें लगने लगा है की कुछ भी होने वाला नहीं है। संसार में सबकुछ गड़बड़ और हमारे विपरीत हो गया है।

३) पथराव – अभाव और ठहराव से ग्रसित हमारी मानसिकता पथराव के ऊपर झुकने लगी है। हम कीचड़ उछालने में ज़्यादा समय व्यतीत करने लगे हैं।आज आप सोशल मीडिया देखिए हरेक आदमी बुराई, दुर्वयबहार और अश्लील भाषा में बातें करने लगे है। सदाचार काम और दुराचार का बोलबाला सब ओर फैल रहा है।

४) प्रभाव – हम अपने आपको गाहे बेगाहे प्रभावित करने की होड़ में शामिल कर लिए है। हरेक मौक़े पर अपनी बड़प्पन और अपने औक़ात की तरफ़ करने लगते हैं। अंदर से एकदम से ख़ाली पर बाहर से ज़ोर का ढिंढोरा जैसे की “सुन रहा है ना तू रो रहा हूँ मैं ।“

सुन रहा है ना तू रो रहा हूँ मैं Read More »

डिसेबल्ड ऑनबोर्ड – ड्राइव केयर फ़ुली

किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार

कल एक वाक्या हुआ – ऑफिस से वापस आते समय एक कार दिखी जिस पर लिखा था, “डिसेबल्ड ऑनबोर्ड – ड्राइव केयर फ़ुली।”

मैं थोड़ा ठहर गया। गाडी धीमी कर ली। हॉर्न नहीं बजाया या साइड लेने की कोशिश नहीं की। कुछ समय उनके पीछे चलता रहा। अगले मोड़ पर उन्होंने मेरे तरफ़ देखी और मुस्कुरा दिया और मेरे भी चेहरे पे मुस्कान बिखर गयी।फिर, मन में एक ख्याल आया – कितने लोग होंगे जिनके मन के अंदर कुछ दर्द होंगे, जिनके शरीर में पीड़ाएँ होंगी, एक चाह होगी की कोई मेरी बात सुन लेता, एक इच्छा होगी की कोई मेरा दर्द बाँट लेता।

तो फिर हमें एक साईन बोर्ड की क्यों जरूरत पड़ती है, क्या इंसान को एक साईन बोर्ड डालनी शुरू कर देनी चाहिए? क्या हम कुछ पल यूँही ठहरकर किसी का दर्द सुन या समझ नहीं सकते। क्यों हम इंसान दूसरे के आँखों में लरजते आंसू को देख और पोछ नहीं सकते।

क्यों नहीं? जरा सोचियेगा।

डिसेबल्ड ऑनबोर्ड – ड्राइव केयर फ़ुली Read More »

अनमोल वचन

किसी भी व्यक्ति के गुण दोष की आलोचना करने से परहेज करें। हमारा काम सिर्फ सेवा करना है। कर्मो का निर्णय करना नहीं।

किसी को कभी भी अगर आपकी सेवा की आवश्यकता हो तो अवश्य करें।

आपके बारे में दूसरा क्या सोचता है इसकी चिंता करने की जगह अपने विचार इस पर केंद्रित करें की आप अपने मनोबल का विकास करें, अपने दृष्टि में खुद ओ अच्छा महसूस करें, बड़ा बने। महान बने।

दुसरो की बातें सुनें, उसपर विचार करें, सोचे और ठीक लगे तो उसे मानने में हिचक मत करें।

सब का सम्मान करें, पर खुद को भी सम्मान मिले ऐसी अपेक्षा मत रखें।

उपकार के बदले उपकार की उपेक्षा करना वाणिज्य होता है। उपकार करने वाले कभी बदले की आशा नहीं रखते।

स्पष्ट बोलो। सत्य बोलो लेकिन कटु सत्य जो किसी के भावना को दुःख पहुंचाए उससे यथासंभव परहेज रखो।

अनमोल वचन Read More »

खुशहाल जीवन के लिए सात बातें दिमाग में बैठा लेने जैसी

खुशहाल जिंदगी चाहते हो?
ये 7 बातें दिमाग में बैठा लो!

१. मुस्कुराओ इसलिए नहीं की तुम दूसरों को खुश दिखो, खुश रहो ताकि मुस्कुराहट नेचुरली होठों पर बनी रहे।

२. जितना दक्ष बनोगे उतना ही ज्यादा धन धान्य और संपदा के स्वामी बनोगे।

३. जितना लोनली रहोगे सोशल मीडिया से उतना ही ज्यादा एडिक्टेड हो जाओगे।

४. नेगेटिविटी को जितना दबाओगे तुमपे उतना ही ज्यादा हावी होता जायेगा।

५. किसी भी इंसान को अगर हद से ज्यादा चाहोगे तो वो ज्यादा भाव खायेगा और दूर भागेगा।

६. अगर लोगों के लिए ज्यादा उपलब्ध रहोगे तो तुम्हारी कदर उतनी ही कम होती जायेगी।

७. तुम जैसे जैसे प्रभावशाली होते जाओगे लोगों से तुम्हारा व्यवहार उतना ही कटु होता जायेगा और दूर होते चले जाओगे।

खुशहाल जीवन के लिए सात बातें दिमाग में बैठा लेने जैसी Read More »

भाव पे न टिकने वाले को दुकानदार समान नहीं देता तो भाव न होने वालों को हरि कैसे मिले

भाव बिना बाजार में वस्तु मिले नहीं मोल।
बिना हरी कमजोर भाव सहित हरी बोल।।
आज नज़र पर गयी कबीर के इस दोहे पर और एक कहानी याद आ गया। एक आदमी पत्नी से बोला की मैं बाज़ार जा रहा हूँ।
पत्नी बोली “बाज़ार जा रहे हो तो कुछ अच्छा दिखे तो ख़रीद लेना और ठग मत जाना बाज़ार में काफ़ी सारे ठग बैठे रहते हैं।”
पति बाज़ार पहुँचा और उसे एक छाता दिखा जो उसे पसंद आ गया। उसने दुकानदार से भाव पूछा।
दुकानदार ने कहा “200 रुपए”
पति को पत्नी की सलाह याद आ गया “उसने कहा 100 का दोगे।”
दुकानदार समझ गया की ग्राहक समझदार है, उसने कहा 160 का दूँगा।
वह समझ दुकानदार बहुत बड़ा ठग है उसने तुरंत भाव बदल दी, कहा 80 का दोगे?
दुकानदार ने कहा 10 का दूँगा।
ग्राहक ने कहा 40 का दोगे।
दुकानदार ने कहा मुफ़्त का ही लेलो
ग्राहक ने कहा फिर तो दो ले लूँगा।
और उसे दुकानदार ने छाता नहीं दिया।
अगर भाव पे न टिकने वाले को दुकानदार समान नहीं देता तो भाव न होने वालों को हरि कैसे मिल सकता है। तो अगर हरि चाहिए तो सम्पूर्ण भाव से पुकारो। ज़रूर ही मिलेंगे।

भाव पे न टिकने वाले को दुकानदार समान नहीं देता तो भाव न होने वालों को हरि कैसे मिले Read More »