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प्रश्न है जबतक मैं स्वयं को नहीं जानता

कई दिनों से एक प्रश्न था
मन में मचलता रहा परेशान करता रहा
कई लोगों से पूछा कईयों से चर्चा भी की
कई ने मुह फेर ली कई ने डांट लगा दी.
प्रश्न फिर भी प्रश्न था मनपटल से मिटा नहीं
घूमता भटकता मन में आया एक ख़याल
क्यूँ न जाऊँ प्रश्न लेकर बुद्ध के पास
बोल मैं बुद्ध से ओ महात्मन
हो अगर न आपको कोई कष्ट या दुबिधा बड़ी
एक प्रश्न है हल ढूँढने को बेकल है मन मेरी
बुद्ध ने कहा – अब तक तुम्हे क्यों न उत्तर मिला
मैंने कहा पूछा कईयों से पर किसीने न उत्तर दिया
बुद्ध ने कहा जवाब के लिए आना एक साल बाद
फिर दे दी शर्त तुम यह प्रश्न किसी से न पूछना
जबाब मिलेगा सही यह वादा है तुमसे मेरा।

रह गया मैं दंग कोई उपाय भी नहीं सुझा
बुद्ध पर करके भरोसा निकल गया चुपचाप
निश्चिंत मैं मन शांत होकर सोचता रहा समाधान
फिर कुछ समय बाद प्रश्न कहीं गुम हो गया.

एक बर्ष बाद बुद्ध बोले बता क्या है प्रश्न तेरा
मैंने कहा रहने दीजिये अब प्रश्न प्रश्न नहीं रहा
उन्होंने कहा तुम बाद में मुझको न बादी करारना
मैं हूँ तैयार तू चाहे तो अभी प्रश्न पूछ डालना
मैंने कहा की अब प्रश्न मेरा न रहा
प्रश्न था जबतक मैं स्वयं को नहीं पहचानता

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