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ईश्वर सर्वत्र हैं तो दिखाई क्यों नहीं देते

संत नामदेव तेरहवीं सदी के एक प्रसिद्द संत थे। एक रोज उनके शिष्यों ने पूछा, “आप कहते हैं की ईश्वर सब जगह है तो दिखाई क्यों नहीं देता?”
संत नामदेव ने शिष्य से एक ग्लास पानी और एक चम्मच नमक लेकर आने को कहा। जब शिष्य पानी और नमक लेकर आया तो उन्होंने नमक को पानी में दाल देने के लिए कहा। शिष्य ने ऐसा ही किया। फिर नामदेव ने उनसे पूछा, “क्या तुम्हे पानी में नमक दिखाई दे रहा है?” शिष्य, “नहीं।”
नामदेव ने एक शिष्य को पानी चखने को कहा और स्वाद पूछा तो शिष्य ने उत्तर दिया, “पानी नमकीन लग रहा है। “
नामदेव ने फिर शिष्य से पानी को उबलने के लिए कहा. थोड़ी देर में पानी उबालकर भाप बन गया और बर्तन में नमक शेष रह गया। नामदेव ने पूछा, “क्या तुम्हे अब नमक दिखाई दे रहा है?”
शिष्य ने हामी में सर हिला दिया।

संत नामदेव मुस्कुराते हुए बोले, ” जिस प्रकार तुम पानी में नमक का स्वाद तो अनुभव कर पाये पर नमक को देख नहीं पाये उसी प्रकार इस जग में तुम्हे ईश्वर हर जगह दिखाई नहीं देता पर तुम उसे अनुभव कर सकते हो। और जिस तरह अग्नि के ताप से पानी भाप  बन कर उड़ गया और नमक दिखाई देने लगा उसी प्रकार तुम भक्ति ,ध्यान और सत्कर्म द्वारा अपने विकारों का अंत कर भगवान को प्राप्त कर सकते हो।”

भक्ति कीजिये, सत्संग कीजिये, ईश्वर के लीलाओं को अध्ययन मनन कीजिये, अभिमान रहित होकर गुरू की सेवा कीजिये, श्रद्धा प्रेम व लगन के साथ प्रभु नाम जपिये, दृढ विश्वास से मन्त्र का जाप कीजिये,  भगवान का सुमिरन करिये, सम्पूर्ण संसार में भगवन की अनुभूति कीजिये, संतोष पूर्ण जीवन जियें और  छल कपट से दूर रहिये। फिर ईश्वर सर्वव्यापी और सर्वत्र दिखेंगे।