skip to content

स्मृतियाँ: चैंपियन वाली शरीर, चुस्ती, स्फूर्ति एवं साहस

अप्रैल मई महीने की धूप और गर्मी काफी भयावह होती है — डिहाइड्रेशन और लू लगने का खतरा हमेशा सिर पर मंडरा रहा होता है। खास करके बिहार प्रदेश जहां पर मेरा जन्म हुआ था। जरा सोचिये, ऐसी धूप और गर्मीं के दोपहरी में आप एक छोटे बच्चे को साइकिल के पीछे दौड़ते हुए पसीने में लथपथ देखें तो आपको कैसा लगेगा?

बात उन दिनों की है जब मैं तीसरी या चौथी कक्षा में पढता था। मेरी प्राथमिक कक्षा की पढाई लालपुर विद्यालय, जहां मेरे पिताजी शिक्षक थे वहीं से हुई थी। मेरे पिताजी औसतन 10 किमी प्रति घंटे के रफ़्तार से साइकिल चलते थे। वो मेरा स्कूल बस्ता साइकिल के कैरियर पर रख देते और मैं उनके साइकिल के पीछे पीछे दौड़ता हुआ घर वापस आता।

एकदिन कड़ी धुप और गर्मी वाली दुपहरी में मैं पीछे पीछे दौड़ रहा था और पिताजी साइकिल से आगे की तरफ बढ़ रहे थे। तभी एक शिक्षक दूसरी तरफ से आ रहे थे। उनकी नज़र मेरे ऊपर पड़ी तो उन्होंने साइकिल रोक ली और जोर से आवाज लगाते हुए डांटने की मुद्रा में मेरे पिताजी से बोले : “आप इतने निर्दयी इंसान तो नहीं हैं कि इतनी बेरहमी से पेश आएं। आपका बच्चा पसीने से लथपथ है, जोड़ जोड़ से साँसें ले रहा है और उसका चेहरा भी लाल हो गया है। फिर भी, आप उसे यूँ पीछे पीछे दौड़ाये चले जा रहे हैं।”

पिताजी ने जवाब दिया: “आज तो मैं लिफ्ट दे दूंगा परंतु, बाकी के जिंदगी भर तो उसे स्वयं ही ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। उस वक़्त न ही तो मैं देखने वाला होऊंगा न ही सँभालने वाला। लेकिन, आज अगर वह परिश्रम से शारीरिक क्षमता का विकास कर लेता है तो सारी उम्र अपने मजबूत पाँव और शरीर के बल लम्बी जीवन पथ पर चलता रहेगा। मुझे इसे लम्बी रेस का घोडा बनाना है और तन और मन से इतना मजबूत की जिंदगी की चुनौतियों का डटकर सामना कर सके। मुझे इसे चैंपियन वाली फौलादी शरीर, स्फूर्ति, ताकत और साहस से परिपूर्ण बनाना है न की एक सामान्य इंसान।”

मैं पसीने से लथ पथ पिता जी के पीछे पीछे दौड़ता रहा। उस समय यह बात बिलकुल ही समझ में नहीं आयी और काफी हद तक बेमानी भी लगी क्योंकि यह पता ही नहीं था की चैंपियन क्या होता है।

आज जब मैं यह वाकया स्मरण कर रहा हूँ और यह लेख लिख रहा हूँ तो मुझे अच्छी तरह से समझ में आ रहा है कि मेरे पिता के सानिध्य में बिता वर्ष इसी भावना से उत्प्रेरित थे की मैं कठिन परिश्रम, सम्पूर्ण समर्पण, और परिपूर्ण मन स्थिति को विकसित करें जिससे की जिंदगी में मैं जो भी करूं उसे सही तरीके से करूं और जीवन जीने के काबिल बन जाऊं।

पिता द्वारा दिए गए ट्रेनिंग और शिक्षा का ही परिणाम है कि मैं आज भी पुष्ट आहार, 7 से 8 घंटे की नींद, नियमित व्यायाम, योग और मेडिटेशन के माध्यम से एक स्वस्थ जीवनचर्या का परिचालन कर रहा हूँ। और जब भी जिंदगी में कठिन परिस्थितियां आयी तो मन नहीं घबराया बल्कि एक सही सोच, समझ, फोकस, और सकारात्मक प्रेरणा लेकर कठिनाइयों और समस्याओं से निबट पाया।

जितने भी मोटिवेशन और व्यक्तित्व विकास के ट्रेनिंग हैं वो सब इसी पर केंद्रित हैं की आप चैंपियन वाली मनस्थिति का विकास कर पाएं, आप शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को सुदृढ़ कर सकें, समस्याओं से संधि नहीं बल्कि संघर्ष करके जीत हासिल करें और जिंदगी को श्राप न समझकर आपके लिए कुछ कर गुजरने का सर्वोच्च अवसर समझ कर जीवनपथ पर अग्रसर होते रहें।

मुझे यह सब बचपन के ही दिनों में मेरे पिता से मिल गया। आज जब मैं वर्कशॉप और ट्रेनिंग करता हूँ तो बचपन में सीखे हुए उन्हीं नुख्स के प्रयोग के लोगों को प्रेरित करता हूँ और वाहवाही बटोरता हूँ।

संस्कृत के ज्ञाता और शिक्षक होने के कारण मेरे पिता को यह पता था की जो माता–पिता अपने बच्चों को पढ़ाते नहीं है ऐसे माँ–बाप बच्चो के शत्रु के समान है. विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी भी सम्मान नहीं पा सकता वह वहां हंसो के बीच एक बगुले की तरह होता है.

माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः ! न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा !!

उनके सानिध्य में बचपन में ही पचपन वाला ज्ञान और तकनीक पता चल गया जिसके बलबूते मैं आज इस मुकाम तक पहुँचा हूँ। आज बस इतना ही….

What do you think?