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भटकाव, ठहराव, बदलाव

कल एक सज्जन से मिला, जो जिंदगी की परेशानियों से पिछले कुछ सालों से संघर्ष कर रहे थे और काफी जद्दोजहद के बाद अब अपने आप को थोड़ा उबरा हुआ महसूस कर रहे हैं।

“आप सब की कृपा, सुझाव, प्रोत्साहन, योग और मेडिटेशन के वजह से अब मैं ठीक महसूस कर रहा हूं।” इन शब्दों से उन्होंने अपनी मानसिक स्थिति को जाहिर किया।

मेरा भी मन बहुत ही प्रसन्न हुआ। मैंने तुरंत ही उनसे कहा:

“आपने जो स्वयं के ऊपर काम किया है, यह ठहराव लाया है यह अवश्य ही सराहनीय है।

हमारी व्यथा का जड़ ही यही है कि हम अकारण बल्ब जलाकर राख लेते हैं और मान लेते हैं के ये हमेशा प्रकाशित ही रहेंगे।

हम सोच लेते हैं कि अपने तो सदा ही अपने ही रहेंगे। यह भूल जाते हैं कि हमारा असली जुराब तो सिर्फ स्वयं से है बाकी सब तो छलावा है।

अब आपको बदलाव के तरफ बढ़ना है। आपने मानसिक अवस्था को और सुचारू करनी है। स्वयं के लिए थोड़ा सा जीना है। खुश रहना है। व्यवस्थित रहना है। व्यवहारिक होना है। वास्तविक होना है।”

वो मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए।