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नारी नहीं चिंगारी है

तुम्हरेहिं भाग राम बन जाहीं ।

दूसर हेतु तात कछु नाहीं ।।

जब प्रभु राम का वन जाना तय हो जाता है तो सुमीत्राजी ने कहा, “लखन बेटा! मैं तो तेरी धरोहर की माँ हूँ, केवल गर्भ धारण करने के लिए भगवान ने मुझे माँ बनाया है।

सुमित्राजी ने असली माँ का दर्शन करा दिया, “तात तुम्हारी मातु बैदेही, पिता राम सब भाँति सनेही – तुम्हारा असली माँ बैदेही है और राम सब भांति पिता समान स्नेहप्रद हैं। “

और उन्होंने यह तक कह दिया, “जौं पै सीय राम बन जाहीं अवध तुम्हार काज कछु नाहीं – अयोध्या में तुम्हारा कोई काम नहीं है, तुम्हारा जन्म ही राम की सेवा के लिए हुआ है। “

ऐसी सुमित्राजी जैसी माताओं के जिनके ऐसे भक्त पुत्र पैदा हुए, सेवक पैदा हुए, महापुरूष पैदा हुए, कल्पना कीजिए “

सुमित्रा जी उन सारी माताओं के शौर्य हैं जिन्होंने अपने दुधमुंहे बच्चों को इस देश की रक्षा के लिए दुश्मनों के बंदुक की गोलियाँ खाकर मरते हुए अपनी आखों के सामने देखा है।

आप कल्पना कर सकते हैं, कि माँ के ऊपर क्या बिताती होगी? जब उन्हें पता चलता होगा किए उनके बालक का सिर काट दिया गया है, माँ ने आँखें बंद कर लेती है, ह्रदय पर मुक्का मार ली हैं – कोई बात नहीं जीवन तो आना और जाना है, देह आती है और जाती है, धर्म की रक्षा होनी चाहिए, जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उनकी रक्षा करता है, “धर्मो रक्षति रक्षितः”

इस देश की रक्षा के लिए कितनी माताओं की गोद सूनी हुई, कितनी माताओं के सुहाग मिटे, कितनों की माथे की बिंदी व सिन्दूर गए, कितनो के घर के दीपक बुझे, कितने बालक अनाथ हुए, कितनो की राखी व दूज के तत्यौहार मिटे, ये देश, धर्म, संस्कृति तब बची है, ये नेताओं के नारो से नहीं बची, ये माताओं के बलिदान से बची, इस देश की माताओं ने बलिदान किया।

माताओं के सामने काल हमेशा कांपता है, माताओं को काल नहीं ले जा सकता, काल शरीर को ले जाता है, माँ को काल स्पर्श नहीं कर सकता। और अगर कल्पना से प्रेरणा मिले तो कुछ करिये ताकि मातृत्व की गरिमा बानी रहे।