सप्त मर्यादाः कवयस्ततकक्षुस्तासामेकामिदभ्यहुरो-गात् |
आयोर्ह स्कम्भ उपमस्य निव्वे पथां विसर्गे धरु धरुणेषु तस्थौ || ऋ० १०|१५|०६
हिंसा, चोरी, व्यभिचार, मद्यपान, जुआ, असत्य-भाषण, और इन्हें करने वालों का सहयोग; ये सप्त मर्यादा का उल्लंघन है। वेद के अनुसार एक भी मर्यादा का उल्लघंन करना पाप है तथा धैर्य पूर्ण तरीक़े से इन हिंसादी पापों को छोड़ देने वाला मर्यादित व्यक्ति और मोक्ष भागी होता हैं |
भगवान राम ने ताउम्र इन मर्यादाओं का पालन किया और इसीलिए हम उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहते हैं। राम राज्य में ना अधर्म करना ना अधर्म होने देना आर्यत्व के लक्षण है। भारत आर्यों का देश है और इसे हम आर्यावर्त भी कहते हैं। राम कथा आर्यो के आदर्श का परिचायक हैं।
समय के साथ आर्यावर्त से आर्य मूल्यों का पतन होता गया और अनार्य विचारवादी लोगों की जनसँख्या बढ़ती गयी। अनार्यि ताक़तें आर्यवर्त पर आक्रमण करने लगे और आर्यवाद का पतन शुरू हो गया। अंग्रेज़ आए और जो थोड़ी बहुत आर्यता के सिद्धांत हममें थे उन्हें भी प्रदूषित कर गए।
आज हम विजयदशमी और दिवाली तो मना लेते हैं जिसकी शुरुआत राम का रावण पर विजय और रामराज्य की स्थापना हेतु शुरू हुई थी लेकिन हम राक्षसिय गुणों को अपने शरीर रूपी अयोध्या में धारण किए घूम रहे हैं।
आज एक ज़रूरत है की हम संकल्प ले के हम वेद स्थापित सप्त मर्यादाओं को फिर से अपने जीवन में अनुसारित करें। हम फिर से वेद मार्ग पर चलें और यही राम राज्य कि पुनः स्थापना होगी। जब हर शरीर अयोध्यामय जो जाएगा।