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भक्ति सूत्र

भक्ति हमारी आत्मा और ईश्वर के बीच एक अटूट कड़ी स्थापित करने वाली सेतु है।  भक्ति हम ईश्वर का ध्यान, जप, दर्शन, व् पूजा में से किसी भी मार्ग को जो हमें उचित प्रतीत हो उस माध्यम से कर सकते हैं या सारे मार्ग का भी यथोचित व् यथासमय उपयोग कर सकते हैं।

भक्ति का लाभ हमें समर्पण (तृष्णा और कामना),  प्रपन्नाता (अहमता एवं अहंकार)) से मुक्ति और प्रेम की अथाह वृद्धि के रूप में ही प्राप्ति होती है।

तुलसीदास रामायण में कहते हैं:
अर्थ न धरम  न काम रूचि, गति न चहु निरबान
जनम जनम रति राम पद ये बरदान मम आन

मेरे मन में धन का लोभ, कामनाओं के प्रति रूचि, जनम मरण के गति से मुक्ति मिले और राम के शरण में शरणगति प्राप्त हो जाए.