किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
कल एक वाक्या हुआ – ऑफिस से वापस आते समय एक कार दिखी जिस पर लिखा था, “डिसेबल्ड ऑनबोर्ड – ड्राइव केयर फ़ुली।”
मैं थोड़ा ठहर गया। गाडी धीमी कर ली। हॉर्न नहीं बजाया या साइड लेने की कोशिश नहीं की। कुछ समय उनके पीछे चलता रहा। अगले मोड़ पर उन्होंने मेरे तरफ़ देखी और मुस्कुरा दिया और मेरे भी चेहरे पे मुस्कान बिखर गयी।फिर, मन में एक ख्याल आया – कितने लोग होंगे जिनके मन के अंदर कुछ दर्द होंगे, जिनके शरीर में पीड़ाएँ होंगी, एक चाह होगी की कोई मेरी बात सुन लेता, एक इच्छा होगी की कोई मेरा दर्द बाँट लेता।
तो फिर हमें एक साईन बोर्ड की क्यों जरूरत पड़ती है, क्या इंसान को एक साईन बोर्ड डालनी शुरू कर देनी चाहिए? क्या हम कुछ पल यूँही ठहरकर किसी का दर्द सुन या समझ नहीं सकते। क्यों हम इंसान दूसरे के आँखों में लरजते आंसू को देख और पोछ नहीं सकते।
क्यों नहीं? जरा सोचियेगा।