भगवान शिव क्षीरसागर से निकले हलाहल का पान कर लिए। पीने के बाद देवता लोग आए और पूछे,”प्रभु आपने विष का पान किया तो आपको डर नहीं लगा?”
शिवजी ने पूछा, “यह हलाहल विष कहाँ से आयी?”
देवता बोले, “समुद्र मंथन से।”
शिवजी ने पूछा, “समुद्र मंथन किसने किया?”
देवता, “जब सारे देवता थक गए तो सागर के स्वामी भगवान विष्णु ने स्वयं।”
शिवजी, “तो आप समझो – भगवान विष्णु स्वयं ही इसे पी लेते लेकिन उन्होंने मेरे पास भेज दिया। मैं तो राम राम जाप रहा था और उन्होंने विष भेज दिया। मैं तो इसे मेरे राम का प्रसाद समझकर पी लिया और विश्राम पा लिया।”
तो आपके पास जो भी है, जो भी आए उसे भगवान का प्रसाद समझ कर पान कर लीजिए, सहजता से विश्राम की अवस्था में सदैव रहेंगे।