श्रीकृष्ण कहते हैं: “इंद्रियों और विषयों के संयोग से पैदा होनेवाला सुख आदि अंत वाले और दुःखके कारण हैं। अत: बुद्धिमान पुरुष उनमें मन नहीं रमाते।”
आँख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा और मन ये छह इंद्रियाँ सतत ही विषयों का भोग मिले इसके लिए लालायित रहते हैं बिलकुल मोबाइल फ़ोन के अंटेना की तरह बल्कि उससे भी तीव्र। अगर विज्ञान की भाषा से देखें तो इनकी ग्रहण शक्ति बाक़ी सारे अंटेनाओं से काफ़ी ज़्यादा हैं। आँख देखने के लिए, कान मधुर वचन सुनने के लिए, नाक सुगंध के लिए, जिह्वा स्वादपूर्ण भोजन के लिए, त्वचा स्पर्श के लिए तो मन भोग विलास मय विचारों में लीन रहने के लिए।
ज़रा सोचिए — आपको रसगुल्ला खाने की इच्छा है, सामने रसगुल्लों से भरा प्लेट आ जाए। आप को ५ १० रसगुल्ले तो बड़े अच्छे लगेंगे लेकिन आपसे १०० रसगुल्ले खाने को कहा जाए तो वह सुख देने वाला होगा या दुःख? इसी तरह, आपका प्रेमी आपसे एक दो बार “आई लव यू” कहने की जगह हार २ मिनट में “आई लव यू कहना शुरू करदे तो आप तो पागल ही जो जाओगे ना।
इसीलिए श्रीकृष्ण यहाँ चेताते हैं की बुद्धिमान पुरुष इंद्रियों और विषयों के भोग से प्राप्त होने वाले स्थिति में मन नहीं रमाते। आप क्या कर रहे हैं? सोचिएगा।