एक छोटी बच्ची स्कूल से वापस आकर मम्मी से बोली, “मम्मी आज में “सुपर एचीवर” बन गयी। “
मम्मी, “लेकिन प्रांशु का क्या हुआ जो हमेशा बनता था?”
बच्ची, “वो आज स्कूल आया ही नहीं तो टीचर ने मुझे बना दिया।”
मम्मी स्तब्ध…
हम तो यह सोच ही नहीं सकते। हमारे सोचने की शक्ति खो चुकी है। कभी आप बच्चे के साथ बगीचे में जाओ. बच्चा पूछेगा – “बृक्ष हरे क्यों हैं?” आप कहोगे, “वृक्ष हरे ही होते हैं इसमें सवाल जैसी कोई बात ही कहाँ है। ” पर अगर एक विज्ञान का स्टूडेंट है तो वो कहेगा क्लोरोफिल के कारण। मगर बच्चे के मन में और कौतुहल बढ़ता है। वो पूछेगा कि वृक्ष में क्लोरोफिल क्यों है? आखिर क्लोरोफिल को वृक्ष में होने की क्या जरूरत है? और, आदमी में क्यों नहीं है? और, क्लोरोफिल कैसे वृक्षों को खोजता रहता है? ‘क्यों’ का कोई सवाल क्लोरोफिल से हल नहीं होता।
आज बच्चे शिक्षकों की उपेक्षा करने लगे हैं। उन्हें भाव नहीं देते। उनका आदर नहीं करते। क्योंकि उन्हें जवाब नहीं मिलता। उन्हें किताब की रटी रटाई बात बताई जा रही है। उनके जिज्ञासा को दबाई जा रही है।
थोड़ा ज्ञान का पर्दा जो लग गया है उसे हटाकर जिज्ञासा की कुछ बुँदे आँखों में डालें।
आप पाएंगे कि चारों तरफ रहस्य खड़ा हुआ है। हरे वृक्ष हरे है, यह भी रहस्यपूर्ण है। वृक्षों में लाल फूल लग रहे हैं, यह भी रहस्यपूर्ण है। एक छोटे—से बीज में इतने—इतने विराटकाय वृक्ष छिपे हैं, यह भी रहस्यपूर्ण है। जीवन शाश्वत मालूम होता है।हर घड़ी रहस्य से भरी है। पर, आपने अपनी आंखें बंद कर ली हैं। आप ने अपनी जिज्ञासा ख़त्म कर दी है। अनंत आनंद है और आनंद मार्ग का पहला कदम ही जिज्ञासा है। जिज्ञासु बनिए ज्ञानी नहीं।