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श्री कृष्ण अर्पणमास्तु

एक छोटा सा बच्चा है। माँ अपने छाती से लगा लेती है बच्चा माँ का दूध पीने लगता है। माँ मातृत्व के आनंद से आनंदित हो जाती है – जैसे उसके लिए मातृत्व से बड़ा कोई सुख ही नहीं हो। एक बच्चा माँ के दूध पर शंका नहीं करता। इसीलिए माँ के रूप में हमें ईश्वरियता से प्रथम साक्षात्कार होता है । आप कितने भी दुःख में हो, माँ का आँचल अगर दो घड़ी के लिए मिल जाए तो शूकूँ आ ही जाता है।

आज कल लोग ईश्वर पर शंका बहुत करने लगे हैं। ईश्वर में भावना की जगह व्यावहारिकता को ज़्यादा खोजने लगे हैं । समर्पण की जगह लॉजिक ने ज़्यादा ले ली है।
मुझे बचपन में सुनी एक कहानी याद आ रही है – एक स्त्री अपने हर काम श्री कृष्ण को समर्पित कर देती। यहाँ तक कि घर को गोबर से नीपती और बचे हुए गोबर श्री कृष्ण अर्पणमास्तु कह के घर के बाहर फेंक देती। वह गोबर सीधा गाँव के मंदिर में स्थापित भगवान कृष्ण के मूर्ति के चेहरे पर जा गिरता। पुजारी बहुत परेशान। हर दिन उसे भगवान के चेहरे की सफ़ाई जो करनी पड़ती।

वह स्त्री बीमार पड़ गयी और जब मृत्यु का समय आया वो श्री कृष्ण अर्पणमास्तु कह कर प्राणत्याग दी। तुरंत मंदिर के भगवान की मूर्ति भी टूट गयी। फिर उस स्त्री को लेने के लिए स्वर्गलोक से विमान आया। वह विमान मंदिर से टकरा गया और मंदिर भी टूटकर गिर गया।

यह कहानी इस बात का परिचायक है की भक्त जब अपना सर्वस्व भगवान को समर्पित कर देता है तो भगवान उसे स्वयं से भी ऊपर उठा देते है। एक बार बिना किसी लॉजिक के भगवान को समर्पण तो करके देखो, एक बार सर उठाकर उसे श्री कृष्ण अर्पणमास्तु कहकर अपने को उसके हवाले करके तो देखो। प्रश्न अपने आप सुलझ जाएँगे। मीरा के ज़हर अमृत में तब्दील हो गए, द्रौपदी की लाज बच गयी, ध्रुव के प्राण बच गए, और गज़ की रक्षा हो गयी। तो आपका भी हो जाएगा।

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