सामान्यतः हमें दो राह दिखते हैं – एक जिसमें हम क्षणिक भोग विलास के वस्तुओं के उपलब्धता को श्रेस्ठ लक्ष्य समझते हैं और दूसरी जिसमें हमारी ज़िंदगी एक समग्र लक्ष्य की प्राप्ति के ऊपर केन्द्रित रहती है।
क्योंकि हम मार्केटिंग ड्रिवेन वातावरण में जीते है तो भोग विलास के वस्तुओं पर हमारी लालसा ज़्यादा रहती है और अक्सर हम सभी इसके चार दुस्परिणामों से ग्रसित रहते हैं।
१) अभाव – हमारे आस पास एक अभाव की भावना फैली हुई है। धन न होने का अभाव, अच्छी शिक्षा न होने का अभाव, भाग्यवान न होने का अभाव, सामाजिक और सांसारिक वातावरण के अनुकूल न होने का अभाव, आदि आदि।
२) ठहराव – हम भाग तो रहे है लेकिन एक तरह से ठहर से गए हुए हैं। हमें लगने लगा है की कुछ भी होने वाला नहीं है। संसार में सबकुछ गड़बड़ और हमारे विपरीत हो गया है।
३) पथराव – अभाव और ठहराव से ग्रसित हमारी मानसिकता पथराव के ऊपर झुकने लगी है। हम कीचड़ उछालने में ज़्यादा समय व्यतीत करने लगे हैं।आज आप सोशल मीडिया देखिए हरेक आदमी बुराई, दुर्वयबहार और अश्लील भाषा में बातें करने लगे है। सदाचार काम और दुराचार का बोलबाला सब ओर फैल रहा है।
४) प्रभाव – हम अपने आपको गाहे बेगाहे प्रभावित करने की होड़ में शामिल कर लिए है। हरेक मौक़े पर अपनी बड़प्पन और अपने औक़ात की तरफ़ करने लगते हैं। अंदर से एकदम से ख़ाली पर बाहर से ज़ोर का ढिंढोरा जैसे की “सुन रहा है ना तू रो रहा हूँ मैं ।“