श्रीकृष्ण कहते हैं:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
“मैं साधुओं की रक्षा करने के लिये और पापकर्म करनेवालोंका विनाश करने के लिये और धर्मकी भलीभाँति स्थापना करने के लिये मैं युगयुग में प्रकट हुआ करता हूँ।”
यह एक बहूत बड़ी gauranti है ईश्वर के तरफ से कि जब भी अधर्म, अन्याय, पाप हावी होने लगेगा तो मैं आकर उनका विनाश करूँगा।
साधुता कामनाओ का विनाशक है। साधुता धर्म का विस्तारक है। साधुता स्वयं का उद्धार और लोगों का उद्धार है। साधुता सृष्टि के समस्त जड़ और चेतन के उपकार हेतु सतत प्रयत्नशील रहना है।
तो जब भी हम साधुता के पथ से भटकते हैं तो हमारी आत्मा हमे कचोटती है कि यह ठीक नहीं है लेकिन कामनाओं के प्रचंडता के कारण आत्मानुभूति दब जाती है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब जब तू धर्म की हानि करेगा और अधर्म को प्रभावित तब तब मैं प्रगट होऊँगा और तुझे फिर से धर्म मार्ग पर लेकर आऊँगा।
“मैं साधुओं की रक्षा करने के लिये और पापकर्म करनेवालोंका विनाश करने के लिये और धर्मकी भलीभाँति स्थापना करने के लिये मैं युगयुग में प्रकट हुआ करता हूँ।”
यह एक बहूत बड़ी गारंटी है परमात्मा के तरफ से कि जब भी अधर्म, अन्याय, पाप हावी होने लगेगा तो मैं आकर उनका विनाश करूँगा।
साधुता का मतलाब यहां कामनाओ के विनाशक से है। साधुता धर्म का विस्तारक है। साधुता स्वयं का उद्धार और लोगों का उद्धार है। साधुता सृष्टि के समस्त जड़ और चेतन के उपकार हेतु सतत प्रयत्नशील रहना है।
तो जब भी हम साधुता के पथ से भटकते हैं तो हमारी आत्मा हमे कचोटती है कि यह ठीक नहीं है लेकिन कामनाओं के प्रचंडता के कारण आत्मानुभूति दब जाती है।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब जब तू धर्म की हानि करेगा और अधर्म को प्रभावित तब तब मैं प्रगट होऊँगा और तुझे फिर से धर्म मार्ग पर लेकर आऊँगा।