श्री कृष्ण कहते हैं:
“भक्तों द्वारा किए गए सारे यज्ञों और तपों के भोक्ता, सम्पूर्ण ब्रह्मांड के महान ईश्वर एवं सभी प्राणियों के मित्र के रूप में जो व्यक्ति मुझे जान लेता है उसे शांति प्राप्त हो जाता है।”
किसी ने भजन कर लिया, किसी ने ध्यान कर लिया, किसी ने पूजा कर ली, किसी ने नाम स्मरण कर लिया, किसी ने यज्ञ कर लिए — चाहे जो भी किए जैसे भी किए सबके भोक्ता भगवान ही हैं। सिर्फ़ शर्त यही है की भाव भक्त का होना चाहिए।
किसी का सहारा बन गये, किसी की भूख मिटा दिये, किसी के दर्द की दवा कर दिए, किसी के आंसू पोंछ दिए, किसी के सपने सच कर दिये, किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट का कारण बन गये, इत्यादि सत्कर्मों के भोक्ता भी स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ही हैं।
वह जो अच्छे बुरे सभी परिस्थितियों में साथी सहायक बने, वह जो समर्थक और शुभचिंतक है, वह जो सब प्रकार से अपने अनुरूप रहे, वह जो प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों में हित ही चाहे — श्रीकृष्ण कहते हैं तुम मुझे सभी प्राणियों का मित्र मान लो।
अभी से श्रीकृष्ण के इस वचन को गठरी में बांध लीजिए की वे ही हमारे प्रथम, एकमात्र और सर्वोपरि मित्र हैं, हमें तो केवल भक्ति का रिश्ता निभाते रहना है।
ॐ शान्ति: शांति: शांति: