श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं : “तुम बाकी सब छोड़कर सिर्फ़ मेरे शरण में आ जाओ।”
अब यही बात जब एक आम आदमी कहे तो वो अपने नश्वर शरीर को ‘मैं’ मानकर कहेगा और सामने वाला इसे अपनी तौहीन समझेगा। लेकिन जब श्रीकृष्ण कहते हैं तो वह एक सिद्ध परमात्मा की आवाज़ है। उसमें मैं वाला घमंड नहीं बल्कि ईश्वरीय आश्वासन है कि जब भी तुम परेशान हो, जब भी तुम्हें आगे रास्ता न दिखे, जब भी संकट से उबरने के कोई उपाय न मिले, सुख हो या दुख —सभी को मेरे पर छोड़कर मेरे शरण में आ जा। बस वैसे ही जैसे एक छोटा बच्चा माँ के पास भाग के चला जाता है।