श्री कृष्ण कहते हैं ^हे पार्थ जब तुम तत्वज्ञान को प्राप्त कर लोगे तो तुममें जो यह मोह माया है वह नहीं रहेगी और तुम सम्पूर्ण प्राणियों को अपने आत्म स्वरूप में तथा मुझमें देखोगे।”
पहले श्रीकृष्ण कहते हैं कि गुरुसे विधिपूर्वक श्रवण मनन और निदिध्यासन के द्वारा तत्त्वज्ञान प्राप्त करनेपर तुम सबसे पहले अपने स्वरूपमें सम्पूर्ण प्राणियोंको देखने लगते हो। सब मैं ही हूँ और सबमें मेरे ही अंश है। फिर जब हम सत्संग, ध्यान, धारणा इत्यादि प्रक्रियाओं द्वारा ईश्वरीय तत्व को समझ लेते हैं फिर तुम्हारी यात्रा तत्वमय स्वयम से ईश्वरमय में विलीन हो जाती है। फिर तेरा मेरा का फेर छूट जाता है। तुम्हारा क्या है जो तुझे खोने का डर है। तुमने क्या पैदा किया है जिसके नष्ट होने से तुम दुखी होओगे। न कोई उमंग है। न कोई तरंग है। द्वैत अद्वैत से भी परे अहं ब्रह्मास्मि में स्थित हो जाओ इसे श्रीकृष्ण तत्वज्ञान कहते हैं।