skip to content

ज्ञान प्राप्ति के योग्य गुरु कौन है

श्रीकृष्ण कहते हैं “अपने आप को सम्पूर्ण समर्पित कर नम्रता, सरलता और जिज्ञासु भाव से ऐसे गुरु जिन्हें आध्यात्मिक शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान हो तथा जो अनंत स्वरूप परमार्थ सत्य के अनुभव में दृढ़ स्थित हो उनके पास जाकर ज्ञान प्राप्ति कर।”

गुरु वह है जो अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाए। क्योंकि हम ज़िंदगी में कई बार ऐसे दुर्गम स्थिति से गुजरते हैं जहां हमारे लिए सही सोचना, सही समझना और समुचित निर्णय लेना दूभर हो जाता है। अर्जुन भी काफ़ी परेशान था और पशोपेश में था।
दो जगह हमें गुरु की आवश्यकता का बहुत ही सुंदर परिचय मिलता है — (क) जब राम सबरी के आश्रम में आते हैं तो सबरी उन्हें पहचान नहीं पाती और कोई छलिया समझकर भाग देती हैं तो उसी समय उनके गुरु मतंग मुनि जी प्रकट होते हैं और कहते हैं “ऐ सबरी यही तो तुम्हारा राम है।” (ख) जब तुलसीदास जी के पास राम लक्ष्मण बाल रूप में आते हैं और चंदन लगा देने कीं ज़िद्द करते हैं तो वो उन्हें भगाते हैं तभी हनुमान जी आकर उन्हें कहते हैं “ये भगवान राम और लखन स्वयं ही बालरूप में हैं” आपने सुना ही होगा “चित्रकूट के घाट पर लगे संतान की भीर। तुलसीदास चंदन रगड़े तिलक करे राम रघुवीर।”
ज़िंदगी में जब भी प्रश्न या परेशानी हो तो सब से पहले “गुरु से निदान का आग्रह कीजिए, अगर गुरु ना हों तो शास्त्र में सुझाए गए उपाय का अनूशरण कर लीजिए और वह भी उपलब्ध न हो तो अपने हृदय की आवाज़ सुनकर निर्णय ले लीजिए लेकिन कभी भी किसी अनभिज्ञ मानव के सलाह से निर्णय मत लीजिए।”