हनुमान जी अशोक वाटिका में पहुँचते हैं और लघूरूप धारण कर पेड़ के ऊपर बैठ जाते हैं। उसी समय रावण पहुँचता है और सीता जी को बहुत तरीक़ों से भयभीत करने की कोशिश करता है फिर चला जाता है। सीता जी दुखी हो जाती हैं।
हनुमान जी एक नायाब तरीक़े से ख़ुद को सीता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। वे सबसे पहले राम द्वारा दी हुई अँगूठी नीचे गिरा देते हैं, सीता अँगूठी देखकर विस्मित हो जाती हैं, उसी समय हनुमान जी राम गुणगान करने लगते हैं जिससे सीता के मन की व्यथा दूर होने लगती है।
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥3॥
सीता की उत्सुकता बढ़ने लगती है वो कहती है तुम कौन हो भाई नीचे तो आओ। हनुमान नीचे आते हैं और अपना परिचय देते हैं:
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥
यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥5॥
कहते हैं कि माँ मैं राम दूत हूँ और कृपा निधान की सपथ मानिए यह सत्य है। सीता जी को मुद्रिका देख कर विश्वास हो जाता है।
यहाँ हमारे लिए दो सीख है;
१) जब कभी आप किसी व्यक्ति से सम्बंध जोड़ने की कोशिश करें तो पहली कोशिश भरोसा पैदा करने की कीजिए,
२) अपने बातों को तथ्यात्मकता के साथ एक कथावाचक(storyteller) के तरह प्रस्तुत करिए।
आज पूरी दुनिया में कथा वाचकता को लोग सर्वोपरि गुण मानते हैं, हनुमान जी एक बहुत उमदा कथावाचक हैं, उनसे सीख लीजिए और एक दक्ष कथा वाचक बनिए।