अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
इस संस्कृत श्लोक का अर्थ है कि महर्षि वेदव्यास ने अठारह पुराणों में जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही है, वह यह है कि दूसरों का भला करना पुण्य है और दूसरों को अपनी वजह से दुखी करना ही पाप है।
यह श्लोक जीवन के बहुत ही मूलभूत सिद्धांत को सरलता से समझने और अपनाने में मदद भी करता है।
परोपकार का अर्थ यहाँ अच्छे कर्म करना जैसे की जरूरतमंदों की मदद करना, समाज कल्याण की भावना को सर्वांगीण करना, आध्यात्मिक उन्नति करना तथा स्वयं एवं संसार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर आध्यात्मिक उन्नति करने को ही जीवन का असली मकसद बताता है।
अब हम यहाँ पाप को ठीक से समझें तो इसका मतलब सिर्फ धार्मिक दृष्टि से गलत कार्य ही नहीं बल्कि वे सभी कर्म भी शामिल हैं जो नैतिक रूप से, देश, काल और परिस्थिति के अनुसार भी अनुचित है और दूसरों को नुकसान या कष्ट पहुँचाने की मनसा से किये जाते हैं।
यहाँ पीड़ा का मतलब शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, और आर्थिक पीड़ा भी है जिससे किसी की प्रतिष्ठा या किसी के अधिकारों का हनन करना भी हो सकता है।
प्रेरणा:
- “परोपकाराय पुण्याय” हमें एक सच्चे और नैतिक जीवन जीने की दिशा में प्रेरित करता है।
- “पापाय परपीडनम्” की अवधारणा हमें एक संवेदनशील, जागरूक और जिम्मेदार व्यक्ति बनने की प्रेरणा देती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारे हर कर्म का प्रभाव दूसरों पर पड़ता है, और इसलिए हमें हमेशा दूसरों की भलाई को ध्यान में रखते हुए कार्य करना चाहिए।